
म्यांमार से हथियारों की तस्करी का पर्दाफाश: मणिपुर में बड़ा रैकेट बेनकाब, 4 गिरफ्तार, देशभर में फैला नेटवर्क!
जुलाई 2025:
मणिपुर पुलिस ने हाल ही में एक अंतरराष्ट्रीय हथियार तस्करी रैकेट का भंडाफोड़ किया है, जो म्यांमार से अवैध हथियार भारत लाकर बेचने के गंभीर आरोपों से जुड़ा है। इस खुलासे ने सुरक्षा एजेंसियों को चौंका दिया है। इस मामले की जांच तब तेज हुई जब पुलिस ने एक प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन UNLF-P (यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट-प्रो) के एक वरिष्ठ नेता को गिरफ्तार किया।
गिरफ्तारी के बाद यह सामने आया कि UNLF-P, जिसने पिछले साल सरकार के साथ युद्धविराम समझौता किया था, अभी भी हथियार नहीं छोड़े हैं और गुपचुप तरीके से आपराधिक गतिविधियों में लिप्त है। यह मामला केवल मणिपुर तक सीमित नहीं है—इस तस्करी नेटवर्क की जड़ें पंजाब सहित कई राज्यों तक फैली हुई हैं।
कहानी की शुरुआत: कैसे हुआ खुलासा?
यह मामला जून के अंत में तब सामने आया जब मणिपुर पुलिस ने चार लोगों को गिरफ्तार किया, जिनमें से एक का नाम सिनम सोमेंद्रो मीतेई उर्फ रिचर्ड है। रिचर्ड खुद को UNLF-P का ‘लेफ्टिनेंट कर्नल’ और प्रोजेक्ट सेक्रेटरी बताता है। पुलिस का कहना है कि उसकी गिरफ्तारी के साथ ही एक बड़े नेटवर्क की परतें खुलने लगीं।
पुलिस सूत्रों के अनुसार, 24 जून को मिले एक खुफिया इनपुट के बाद इंफाल में एक बंदूक तस्करी सिंडिकेट की पहचान हुई। इस आधार पर पुलिस ने नॉन्गथोंबम गन हाउस के मालिक लांचेनबा नॉन्गथोंबम को हिरासत में लिया। पूछताछ में उसने कबूल किया कि उसने बिना किसी वैध दस्तावेज के हथियार बेचे थे, और इसी से पुलिस रिचर्ड तक पहुंची।
सीजफायर समझौता सिर्फ दिखावा?
UNLF-P ने नवंबर 2023 में मणिपुर सरकार के साथ औपचारिक रूप से सीजफायर समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इसके तहत उन्हें न केवल हथियार जमा करने थे, बल्कि संगठन के सभी सक्रिय सदस्यों की सूची भी देनी थी। लेकिन जांच में सामने आया है कि न तो हथियार जमा किए गए और न ही कोई सूची सौंपी गई।
इसके विपरीत, कुछ सदस्य अभी भी जबरन वसूली और अन्य आपराधिक गतिविधियों में लगे हुए हैं। पुलिस का कहना है कि यह सीजफायर सिर्फ एक छलावा था, ताकि संगठन पर बढ़ते कानूनी दबाव से बचा जा सके।
म्यांमार से हथियार भारत में कैसे पहुंचे?
पुलिस की जांच से पता चला है कि यह गिरोह म्यांमार से विदेशी हथियारों की तस्करी कर भारत में अलग-अलग राज्यों तक पहुंचा रहा था। हथियारों को नकली दस्तावेजों और वैध दिखने वाले गन हाउस की मदद से वितरित किया जाता था।
इस रैकेट का एक सिरा पंजाब तक पहुंच चुका है, जहां एक मामला दर्ज हो चुका है और अन्य राज्यों में भी जांच जारी है। ऐसे मामलों को भारतीय शस्त्र अधिनियम की धारा 10 के तहत गंभीर अपराध माना जाता है, जो विदेश से हथियार लाने पर कड़ी सजा का प्रावधान करता है।
रिचर्ड के घर से बरामद हुआ खौफनाक जखीरा
पुलिस ने जब रिचर्ड के घर पर छापा मारा, तो वहां से चार अमेरिकी पिस्टल, एक ऑस्ट्रियन रिवॉल्वर, एक भारतीय पिस्टल, दर्जनों विदेशी कारतूस, वायरलेस सेट, और हाई-एंड मोबाइल फोन बरामद किए गए।
इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह तस्करी सिर्फ सीमित स्तर पर नहीं थी, बल्कि एक सुनियोजित अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क का हिस्सा थी।
तीन दशक पुराना आपराधिक इतिहास
रिचर्ड का आपराधिक इतिहास भी कम खतरनाक नहीं है। वह 1995 में UAPA के तहत पहली बार गिरफ्तार हुआ था। इसके बाद 2005 और 2006 में भी गिरफ्तारियां हुईं। 2003 में वह गुवाहाटी से बांग्लादेश तक उग्रवादियों को भेजने और अवैध विदेशी मुद्रा लेनदेन के मामलों में भी शामिल रहा है।
गिरफ्तारी के बाद रिचर्ड ने सीजफायर समझौते का हवाला देकर खुद को कानूनी कार्रवाई से बचाने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने इस तर्क को यह कहकर खारिज कर दिया कि हथियार तस्करी का मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है और बेहद गंभीर है।
UNLF-P की मंशा पर फिर उठे सवाल
UNLF-P की कमान ख पंबेई के हाथों में है। यह वही संगठन है, जिसने इंफाल घाटी के पहले मीतेई उग्रवादी समूह के तौर पर शांति वार्ता के लिए हाथ बढ़ाया था। लेकिन अब ऐसा लगता है कि उनका यह कदम महज़ एक रणनीति थी, ताकि उन पर कानून का शिकंजा ढीला हो सके।
जब UNLF-P ने कुकी-बहुल इलाकों के पास कैंप लगाने की अनुमति मांगी, तो सुरक्षा एजेंसियों ने इसका विरोध किया। उन्हें डर था कि इससे पहले से चल रही जातीय हिंसा और भड़क सकती है, जिसमें अब तक 200 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है।
क्या शांति की उम्मीद अब भी है?
भले ही सरकार और UNLF-P के बीच सीजफायर समझौता हुआ हो, लेकिन 2024 में हुई कई घटनाएं बताती हैं कि संगठन के सदस्य अब भी सक्रिय हैं। कुछ मामलों में तो यह भी कहा गया कि उन्होंने सुरक्षा बलों से हथियार छीन लिए।
इस पूरे घटनाक्रम ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या ऐसे संगठनों के साथ सीजफायर समझौते वास्तव में कारगर हैं या केवल समय खरीदने का जरिया?
अब क्या आगे?
फिलहाल, रिचर्ड और अन्य गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ जारी है। सुरक्षा एजेंसियां अब यह जानने की कोशिश कर रही हैं कि यह नेटवर्क कितना बड़ा है और किन-किन राज्यों में फैला हुआ है। इस बीच, केंद्र सरकार और सुरक्षा बल इस बात को लेकर सतर्क हो गए हैं कि म्यांमार बॉर्डर से हथियारों की तस्करी को कैसे रोका जाए।
मणिपुर में भले ही सीजफायर की घोषणा हुई हो, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि हिंसा, तस्करी और विश्वासघात अब भी जारी है। देश की सुरक्षा व्यवस्था के लिए यह एक बड़ा अलार्म है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।