
पुणे कैंप में सेना की बड़ी कार्रवाई: उपेक्षित ज़मीन पर बनेगी 10 फीट ऊंची सुरक्षा दीवार, खत्म होंगे अवैध कब्जे और गंदगी
पुणे, 7 जुलाई 2025:
पुणे कैंटोनमेंट के प्रतिष्ठित बिशप स्कूल के सामने वर्षों से उपेक्षित पड़ी रक्षा भूमि पर अब सेना सख्त कदम उठाने जा रही है। सुरक्षा और पर्यावरण संबंधी बढ़ती चिंताओं के बीच सैन्य अधिकारियों ने इस जमीन के चारों ओर 10 फीट ऊंची सुरक्षा दीवार बनाने की योजना का ऐलान किया है। स्थानीय लोगों के अनुसार यह जमीन अब असामाजिक गतिविधियों का अड्डा बन चुकी है—यहां खुले में पेशाब, अवैध कचरा फेंकना, स्क्रैप इकट्ठा करना और छोड़ी गई गाड़ियां खड़ी करना आम बात हो गई है।
स्थानीय स्तर पर लगाए गए एक पुराने और मिटते जा रहे साइनबोर्ड पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) का आदेश लिखा हुआ है, जिसमें यहां कचरा डालने पर रोक है। लेकिन इस आदेश का कोई पालन नहीं हो रहा। ऐसे में सेना ने अब स्वयं कमान संभालने का निर्णय लिया है।
जल्द शुरू होगा घेराबंदी का काम
कैंटोनमेंट क्षेत्र में रक्षा भूमि की निगरानी कर रहे एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी ने जानकारी दी कि अगले छह हफ्तों के भीतर दीवार निर्माण का कार्य शुरू कर दिया जाएगा। उन्होंने कहा, “इस संबंध में सभी आवश्यक प्रक्रियाएं पूरी कर ली गई हैं। जमीन के चारों ओर एक सुरक्षात्मक दीवार बनाई जाएगी ताकि भविष्य में किसी भी तरह की अवैध गतिविधियों को रोका जा सके।”
गंदगी, मलबा और जानवरों का बना है अड्डा
वर्तमान में यह पूरी जमीन प्लास्टिक कचरे, सीमेंट के टुकड़ों, ईंटों के मलबे और पुरानी गाड़ियों से पटी पड़ी है। यहां अक्सर भैंसे चराई के लिए लाई जाती हैं, और परिसर में बना एक सिग्नल टावर भी असुरक्षित स्थिति में है। ना तो कोई गार्ड तैनात है और ना ही कोई नियमित पेट्रोलिंग होती है, जिससे जमीन पर अतिक्रमण का खतरा लगातार बना हुआ है।
पर्यावरणीय और ऐतिहासिक महत्व भी जुड़ा है
हालांकि उपेक्षा के बावजूद, पर्यावरणविदों का कहना है कि इस ज़मीन पर कई दुर्लभ पक्षियों की प्रजातियां पाई गई हैं, जो इसके पर्यावरणीय महत्व को दर्शाती हैं। इसके अलावा इस भूखंड पर एक पुरानी ‘ओल्ड ग्रांट बंगला’ (OGB) भी स्थित है, जो औपनिवेशिक काल की धरोहर है और इसे संरक्षित किया जाना जरूरी है।
सामाजिक कार्यकर्ताओं ने किया फैसले का स्वागत
कैंटोनमेंट क्षेत्र में सक्रिय समाजसेवी राजाभाऊ चव्हाण ने सेना की इस पहल का स्वागत किया है। उन्होंने कहा, “इस ज़मीन की रक्षा में अब और देरी नहीं होनी चाहिए। सुरक्षा दीवार का निर्माण एक बेहद ज़रूरी और सही दिशा में उठाया गया कदम है। सेना को चाहिए कि कैंटोनमेंट क्षेत्र में मौजूद सभी ओल्ड ग्रांट बंगले फिर से अपने अधिकार में ले। इनका ऐतिहासिक महत्व है और इन्हें संरक्षित रखना राष्ट्रहित में है।”
सेना और PCB के बीच समन्वय
पुणे कैंटोनमेंट बोर्ड (PCB) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुब्रत पाल ने भी रक्षा अधिकारियों के साथ समन्वय की पुष्टि की है। उन्होंने बताया, “हमें जानकारी मिली है कि इस ज़मीन की सुरक्षा के लिए दीवार बनाने का प्रस्ताव दिया गया है और इस दिशा में कार्रवाई शुरू हो चुकी है।”
ओल्ड ग्रांट बंगले: इतिहास में जड़ें, आज विवादों में उलझे
पुणे कैंटोनमेंट क्षेत्र में मौजूद ‘ओल्ड ग्रांट बंगले’ ब्रिटिश शासनकाल में नागरिकों को विशेष शर्तों पर आवासीय उपयोग के लिए दिए गए थे। इन बंगलों की संरचना का मालिकाना हक तो उनके रहवासियों के पास होता है, लेकिन भूमि पर स्वामित्व रक्षा मंत्रालय के पास ही रहता है।
समय के साथ इन बंगलों की हालत खराब हो चुकी है या फिर ये कानूनी विवादों और अतिक्रमणों में फंस गए हैं। हाल ही में रक्षा संपदा निदेशालय (Directorate of Defence Estates) की एक जांच में कम से कम 20 ओल्ड ग्रांट बंगलों की बिक्री और निर्माण में अनियमितताएं पाई गईं। इनमें से चार बंगलों को सील कर दिया गया है, जिनकी कुल अनुमानित कीमत करीब ₹500 करोड़ रुपये है।
और 16 संपत्तियों पर कार्रवाई जारी
पुणे और खड़की कैंटोनमेंट क्षेत्रों में 16 और संपत्तियों पर भी ‘रीसम्पशन’ यानी पुनः अधिग्रहण की कार्रवाई शुरू की गई है। इन पर आरोप है कि इन्हें अवैध तरीके से बेचा या हस्तांतरित किया गया है।
अधिकारियों ने अब पिछले दो दशकों में हुए 45 ओल्ड ग्रांट बंगलों के लेन-देन का रिकॉर्ड जुटाने के लिए पंजीकरण महानिरीक्षक (IGR) के साथ मिलकर काम शुरू किया है। इनमें पैन कार्ड और अन्य दस्तावेजों की मांग की जा रही है ताकि कानूनी प्रक्रिया पूरी की जा सके। इस बीच, जिन संपत्तियों पर संदेह है, उन पर चल रहे सभी निर्माण कार्य रोक दिए गए हैं, क्योंकि ऐसा संदेह है कि इन अनुमतियों के लिए तथ्य छुपाए गए थे।
पुणे कैंप में रक्षा भूमि की घेराबंदी का फैसला सुरक्षा, पर्यावरण और ऐतिहासिक संरक्षण की दिशा में एक अहम कदम है। सेना और प्रशासन की यह संयुक्त पहल न सिर्फ अवैध गतिविधियों पर लगाम लगाएगी, बल्कि ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षित करने की दिशा में भी एक नई शुरुआत करेगी। आने वाले दिनों में इस ज़मीन की तस्वीर पूरी तरह बदलने की उम्मीद है, और यदि सब कुछ योजना के अनुसार चलता रहा, तो यह स्थान एक सुरक्षित और संरक्षित क्षेत्र बन सकता है, जो पुणे की विरासत को सम्मान देता है।
(by harjeet singh)