
कारगिल युद्ध की शहादतें सिर्फ वीरता की मिसाल नहीं, बल्कि इंसानियत और रिश्तों की अनमोल कहानियाँ भी हैं। ऐसी ही एक दिल छू लेने वाली दास्तान है कैप्टन विजयंत थापर की, जिन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
12 जून 1999 को, दुश्मन के बंकर पर कब्जा करते हुए जब कैप्टन थापर शहीद हुए, उसके कुछ समय पहले उन्होंने एक भावुक खत लिखा था। यह आखिरी खत सिर्फ एक सैनिक की अंतिम इच्छा नहीं, बल्कि देशभक्ति, पारिवारिक जुड़ाव और मानवीय संवेदनाओं का अद्भुत दस्तावेज़ बन गया। इसमें उन्होंने न सिर्फ अपने परिवार को अलविदा कहा, बल्कि देश के लिए बार-बार जान देने की इच्छा भी जताई। उन्होंने यह भी लिखा कि युवा पीढ़ी को भारतीय सैनिकों के बलिदान से जरूर अवगत कराना चाहिए।
इस खत में एक छोटी बच्ची रुखसाना का भी ज़िक्र था, जो कुपवाड़ा के एक स्कूल में पढ़ती थी। कैप्टन थापर उसे चॉकलेट और सालाना 50 रुपये पॉकेटमनी दिया करते थे। उन्होंने अपने परिवार से यह वादा निभाने की गुज़ारिश की थी कि अगर वे लौटकर न आएं, तो रुखसाना को ये प्यार और मदद मिलती रहे — और अनाथ बच्चों के लिए भी योगदान दिया जाए।
आज भी, कैप्टन थापर के पिता वी.एन. थापर हर साल कारगिल युद्ध की वर्षगांठ पर द्रास की उन पहाड़ियों पर जाते हैं, जहां उनके बेटे ने अपने प्राण न्यौछावर किए। वे रुखसाना को चॉकलेट और 50 रुपये देना कभी नहीं भूलते — उस बेटे की याद में, जिसने रिश्तों की गर्माहट और देशभक्ति को एक ही सांस में जिया।
कैप्टन विजयंत थापर ने एक बार कहा था कि वे रुखसाना के निकाह में शामिल होना चाहते हैं। अफसोस, उनका सपना अधूरा रह गया, लेकिन उनका प्यार और विरासत आज भी लोगों के दिलों में ज़िंदा है।