
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक मामले में 77 वर्षीय मां को ₹5000 मासिक भरण-पोषण देने से बचने के लिए बेटे द्वारा दायर याचिका पर कड़ी टिप्पणी की है। न्यायालय ने इस प्रकरण को “कलयुग” का उदाहरण बताते हुए बेटे की याचिका को खारिज कर दिया।
मामले के अनुसार, वृद्ध मां ने अपने बेटे से भरण-पोषण की मांग की थी, जिसे निचली अदालत ने स्वीकार करते हुए बेटे को ₹5000 मासिक देने का आदेश दिया था। इस आदेश के खिलाफ बेटे ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें उसने आर्थिक तंगी का हवाला देते हुए भरण-पोषण राशि कम करने या समाप्त करने की मांग की।
हाईकोर्ट ने बेटे की दलीलों को अस्वीकार करते हुए कहा कि एक वृद्ध मां, जिसने अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा अपने बच्चों की परवरिश में बिताया है, उसे इस उम्र में अपने ही बेटे से भरण-पोषण के लिए लड़ना पड़ रहा है, यह समाज के नैतिक मूल्यों में गिरावट का प्रतीक है। न्यायालय ने “कलयुग” शब्द का उपयोग करते हुए कहा कि यह घटना वर्तमान समय की नैतिक पतन की ओर संकेत करती है।
अदालत ने बेटे को निर्देश दिया कि वह अपनी मां को नियमित रूप से ₹5000 मासिक भरण-पोषण प्रदान करे और भविष्य में इस आदेश का पालन सुनिश्चित करे। साथ ही, न्यायालय ने समाज में बुजुर्गों के प्रति सम्मान और देखभाल की भावना को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
यह मामला एक महत्वपूर्ण उदाहरण है जो दर्शाता है कि न्यायपालिका बुजुर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए तत्पर है और उनके सम्मान और भरण-पोषण के लिए आवश्यक कदम उठाने से नहीं हिचकिचाती।