
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में एक चुनावी रैली में ऐतिहासिक कश्मीर विवाद पर बड़ा बयान देते हुए कहा कि अगर पंडित नेहरू की सरकार ने तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल की सलाह मानी होती, तो आज पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) भारत का हिस्सा होता और देश को दशकों तक आतंकवाद का सामना न करना पड़ता। प्रधानमंत्री ने यह टिप्पणी 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले और 7 मई को शुरू किए गए ‘ऑपरेशन सिंधूर’ की पृष्ठभूमि में की।
प्रधानमंत्री मोदी का बयान: “पटेल चाहते थे कि सेना तब तक ना रुके जब तक POK वापस न ले लिया जाए”
पीएम मोदी ने मंगलवार को कहा,
“यह सरदार पटेल की इच्छा थी कि जब तक पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर (POK) वापस न ले लिया जाए, तब तक सेना को नहीं रुकना चाहिए। लेकिन सरदार साहब की बात नहीं मानी गई। और पिछले 75 वर्षों से ये मुजाहिदीन खून-खराबा करते आ रहे हैं। पहलगाम में जो हुआ, वो उसी कहानी का हिस्सा है।”
उन्होंने आगे कहा,
“हर बार भारतीय सेना ने पाकिस्तान को हराया है। पाकिस्तान अब समझ गया है कि वो भारत से नहीं जीत सकता।”
नेहरू बनाम पटेल: कश्मीर को लेकर ऐतिहासिक मतभेद
प्रधानमंत्री मोदी के बयान के बाद फिर एक बार यह ऐतिहासिक बहस शुरू हो गई है कि आखिर सरदार पटेल और पंडित नेहरू के बीच कश्मीर को लेकर क्या और कितने बड़े मतभेद थे?
इतिहासकार राजमोहन गांधी, जिन्होंने “Patel: A Life” पुस्तक लिखी है, बताते हैं कि पटेल का कश्मीर को लेकर दृष्टिकोण 1947 के सितंबर तक बहुत स्पष्ट नहीं था। लेकिन 13 सितंबर 1947 को जब उन्हें पता चला कि पाकिस्तान ने जूनागढ़ के मुस्लिम नवाब द्वारा भारत में शामिल होने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है, तब उनका नजरिया पूरी तरह से बदल गया।
जूनागढ़, कश्मीर और हैदराबाद: पटेल की रणनीतिक सोच
राजमोहन गांधी लिखते हैं,
“अगर जिन्ना एक हिंदू बहुल राज्य (जूनागढ़) को ले सकते हैं, तो पटेल क्यों एक मुस्लिम बहुल राज्य (कश्मीर) को छोड़ें? उस दिन से जूनागढ़ और कश्मीर उनकी रणनीति के मोहरे बन गए—एक प्यादा और एक रानी।”
पटेल का मानना था कि पाकिस्तान को कड़ा संदेश देना जरूरी है। उन्होंने कश्मीर, हैदराबाद और जूनागढ़ को भारत में मिलाने की दिशा में निर्णायक सोच दिखाई।
क्या हुआ अक्टूबर 1947 में?
- 26 अक्टूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारत में विलय के लिए सहमति दी।
- उसी दिन प्रधानमंत्री नेहरू के निवास पर एक महत्वपूर्ण बैठक हुई, जिसमें महाराजा के प्रधानमंत्री महाजन ने तुरंत भारतीय सेना की मदद की मांग की।
- पंडित नेहरू नाराज हो गए और महाजन से चले जाने को कहा। वहीं सरदार पटेल ने स्पष्ट शब्दों में कहा,
“महाजन, आप पाकिस्तान नहीं जा रहे हैं।”
नेहरू ने कश्मीर मामला क्यों उठाया UN में?
पाकिस्तानी घुसपैठ के बढ़ने के बाद, नेहरू ने इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाने का फैसला किया और 1 जनवरी 1948 को भारत ने संयुक्त राष्ट्र (UN) का दरवाजा खटखटाया।
लॉर्ड माउंटबेटन की सलाह पर यह निर्णय लिया गया।
पटेल इस फैसले से नाखुश थे। उन्होंने स्पष्ट कहा था कि:
“जब हम मजबूत स्थिति में हैं, उस समय प्रधानमंत्री का जिन्ना के पास जाना भारत की जनता कभी माफ नहीं करेगी।”
ऑपरेशन सिंधूर’ और आज का संदर्भ
2025 के अप्रैल महीने में पहलगाम आतंकी हमले के बाद, भारत ने ऑपरेशन सिंधूर लॉन्च किया और पाकिस्तान व POK में स्थित आतंकी शिविरों पर हमला किया। यह एक सीमित युद्ध के रूप में सामने आया।
पीएम मोदी ने इस ऑपरेशन को सरदार पटेल की नीति से जोड़ते हुए कहा कि “अगर उस समय सेना को रोका न गया होता, तो आज की स्थिति बिल्कुल अलग होती।”
कश्मीर नेहरू का ‘बच्चा’ था, पटेल ने हस्तक्षेप नहीं किया
राजमोहन गांधी के मुताबिक,
“कश्मीर पंडित नेहरू का ‘baby’ था। इसलिए पटेल ने भले ही कई निर्णयों से असहमति जताई, लेकिन खुलकर हस्तक्षेप नहीं किया।”
- पटेल जनमत संग्रह, संयुक्त राष्ट्र में मामला, सीज़फायर, और महाराजा की हटाने के पक्ष में नहीं थे।
- अगस्त 1950 में उन्होंने जयप्रकाश नारायण से कहा,
“कश्मीर अब असुलझनीय है (Kashmir is insoluble)”
पटेल की नीतिगत व्यावहारिकता
पटेल एक व्यावहारिक नेता थे। उनका मानना था कि अगर कोई मुद्दा उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं है, तो उस पर टिप्पणी करना व्यर्थ है। जयप्रकाश नारायण के अनुसार,
“पटेल ने कभी खुलकर यह नहीं कहा कि वह कश्मीर मुद्दे को कैसे हल करते, क्योंकि उन्हें इसकी जिम्मेदारी कभी मिली ही नहीं।”
क्या होता अगर पटेल की नीति अपनाई जाती?
इतिहास में ‘अगर’ का कोई स्थान नहीं होता, लेकिन यह तो साफ है कि सरदार पटेल और पंडित नेहरू के बीच कश्मीर को लेकर गहरे मतभेद थे। पटेल सैन्य कार्रवाई को प्राथमिकता देते थे, वहीं नेहरू ने इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुलझाने की कोशिश की।
प्रधानमंत्री मोदी ने इन्हीं मतभेदों की ओर इशारा करते हुए मौजूदा कश्मीर नीति को सरदार पटेल की सोच से जोड़ने की कोशिश की है।