
दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारतीय सेना के एक अधिकारी की बर्खास्तगी को बरकरार रखा है, जिन्होंने अपनी ईसाई आस्था का हवाला देते हुए साप्ताहिक धार्मिक परेड में भाग लेने से इनकार किया था। न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शैलिंदर कौर की खंडपीठ ने इस निर्णय में कहा कि अधिकारी का आचरण सेना की धर्मनिरपेक्षता और अनुशासन के खिलाफ था।
मामला क्या था?
सैमुअल कमलेसन, जो मार्च 2017 में भारतीय सेना में कमीशन प्राप्त कर लेफ्टिनेंट बने थे, 3rd कैवलरी रेजिमेंट में तैनात थे। यह रेजिमेंट मुख्य रूप से सिख, जाट और राजपूत सैनिकों की है। कमलेसन ने रेजिमेंट की साप्ताहिक धार्मिक परेड में भाग लेने से इनकार किया, क्योंकि रेजिमेंट में केवल मंदिर और गुरुद्वारा थे, जबकि उनके लिए कोई चर्च या सर्वधर्म स्थल उपलब्ध नहीं था। उन्होंने कहा कि वह धार्मिक परेड में भाग लेते थे, लेकिन पूजा के दौरान मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश से बचते थे।
सेना ने उन्हें कई बार समझाया और परामर्श सत्र आयोजित किए, लेकिन वह नहीं माने। अंततः, सेना प्रमुख ने उनके आचरण को अनुशासनहीन माना और उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया, साथ ही पेंशन और ग्रेच्युटी भी रोक दी।
न्यायालय का निर्णय
दिल्ली उच्च न्यायालय ने कमलेसन की बर्खास्तगी को उचित ठहराया। न्यायालय ने कहा कि भारतीय सेना का उद्देश्य देश की रक्षा करना है, और इसके लिए सभी सैनिकों को एकजुट होकर काम करना आवश्यक है। अधिकारी का धार्मिक परेड में भाग लेने से इनकार करना सेना की धर्मनिरपेक्षता और अनुशासन के खिलाफ था। न्यायालय ने यह भी कहा कि सेना के अधिकारी को अपने व्यक्तिगत धार्मिक विश्वासों से ऊपर उठकर अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।
निष्कर्ष
यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि भारतीय सेना में अनुशासन और एकता सर्वोपरि है। व्यक्तिगत धार्मिक विश्वासों का सम्मान किया जाता है, लेकिन सेना के कर्तव्यों और परंपराओं का पालन करना भी अनिवार्य है। इस निर्णय से यह संदेश जाता है कि सेना में सेवा करते समय व्यक्तिगत आस्थाओं को संगठन की आवश्यकताओं के साथ संतुलित करना आवश्यक है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने धार्मिक परेड में भाग लेने से इनकार करने वाले सेना अधिकारी की बर्खास्तगी को बरकरार रखा