
140 करोड़ जनता की आवाज या विदेशी सम्मान का विरोध? भगवंत मान बनाम मोदी विदेश दौरा विवाद पर सियासी घमासान”
भारत की राजनीति में एक बार फिर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच बयानबाज़ी का दौर गरमा गया है। इस बार मामला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विदेश दौरों को लेकर पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान द्वारा दिए गए तीखे बयान का है। मान ने एक जनसभा और फिर पंजाब विधानसभा में प्रधानमंत्री के विदेश दौरे और वहां मिले सम्मान को लेकर सवाल उठाए। इसके जवाब में हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और विदेश मंत्रालय (MEA) ने उनके बयान को गैर-जिम्मेदाराना और लोकतांत्रिक मर्यादाओं के विरुद्ध बताया है।
लेकिन क्या यह सिर्फ बयानबाज़ी है या 140 करोड़ भारतीयों की चिंता? आइए इस पूरे प्रकरण को विस्तार से समझते हैं…
भगवंत मान ने उठाए सवाल: “10,000 आबादी वाले देश में सम्मान और यहां की समस्याओं पर चुप्पी क्यों?”
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने गुरुवार को पीएम मोदी के हालिया विदेशी दौरे पर तंज कसते हुए कहा, “प्रधानमंत्री जी अब घाना में हैं क्या? आ गए हैं या आ रहे हैं? यहां 140 करोड़ लोगों के देश में रुकने की फुर्सत नहीं, मगर वो मैगनेशिया, गलवेशिया, टारवेशिया जैसे देशों के दौरे कर रहे हैं।”
मान यहीं नहीं रुके। उन्होंने कहा कि जिन देशों में पीएम जा रहे हैं, वहां की कुल जनसंख्या 10,000 है और वहीं उन्हें ‘सबसे बड़ा सम्मान’ मिल रहा है। “हमारे देश में तो जेसीबी चलती है तो उतने लोग इकट्ठा हो जाते हैं”, उन्होंने व्यंग्य में कहा।
हरियाणा के मुख्यमंत्री का पलटवार: “देश से माफ़ी मांगें मान साहब”
हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने भगवंत मान के बयान को “अलोकतांत्रिक” और “संविधानिक पद की गरिमा के खिलाफ” बताया। उन्होंने कहा, “भगवंत मान को यह याद रखना चाहिए कि वो प्रधानमंत्री पर नहीं, बल्कि 140 करोड़ भारतीयों की आस्था और विश्वास पर सवाल उठा रहे हैं।”
सैनी ने सोशल मीडिया पर लिखा, “विदेश नीति में हस्तक्षेप करने की बजाय उन्हें अपने राज्य की चिंता करनी चाहिए, जो नशे, भ्रष्टाचार और कर्ज में डूबा हुआ है।”
उन्होंने यह भी कहा कि मोदी सरकार की वैश्विक रणनीति और नेतृत्व ने भारत को दुनिया के विकसित देशों की कतार में लाकर खड़ा कर दिया है। “कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के समय पीएम मोदी ने न केवल भारत की रक्षा की, बल्कि ‘वंदे भारत मिशन’ के जरिए हजारों भारतीयों को विदेशों से सुरक्षित घर वापस लाया।”
विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया: “गैर-जिम्मेदाराना और अवांछनीय बयान”
प्रधानमंत्री पर की गई टिप्पणी को लेकर सिर्फ भाजपा नेता ही नहीं, बल्कि भारत सरकार के विदेश मंत्रालय (MEA) ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी है। मंत्रालय ने बिना नाम लिए कहा कि “भारत सरकार इन गैर-जिम्मेदाराना और अनावश्यक टिप्पणियों से खुद को अलग करती है। ये टिप्पणियाँ हमारे मित्र राष्ट्रों के साथ संबंधों को नुकसान पहुंचा सकती हैं।”
यह बयान इसलिए अहम है क्योंकि यह सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं रहा, बल्कि भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि और कूटनीतिक संबंधों से भी जुड़ गया।
मान का पलटवार: “क्या हमें विदेश नीति पर सवाल उठाने का अधिकार नहीं?”
विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया के बावजूद भगवंत मान पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। शुक्रवार को पंजाब विधानसभा में उन्होंने एक बार फिर इस मुद्दे को उठाया। उन्होंने पूछा, “क्या हमें प्रधानमंत्री से सवाल पूछने का हक नहीं है? क्या उनकी विदेश नीति पर सवाल नहीं किया जा सकता?”
मान ने यह भी कहा, “जो देश पीएम मोदी की यात्रा के दौरान सम्मान देते हैं, क्या वे हमारी समस्याओं में साथ खड़े होते हैं? जब पाकिस्तान से संबंध खराब होते हैं, तो क्या वे देश हमारे समर्थन में आते हैं?”
अडानी का भी ज़िक्र: “जहां पीएम जाते हैं, वहीं अडानी का बिज़नेस क्यों शुरू होता है?”
भगवंत मान ने मोदी के विदेशी दौरे को देश की कुछ चुनिंदा कंपनियों से भी जोड़ते हुए सवाल किया। उन्होंने कहा, “मैंने पूछा कि पीएम जहां-जहां जाते हैं, वहां अडानी का व्यापार क्यों शुरू होता है? इसका मतलब है कि वो किसी का व्यापार शुरू कराने जा रहे हैं। क्या हमें यह सवाल पूछने का हक नहीं?”
मान ने दो टूक कहा कि “मैं फिर भी यह सवाल पूछता रहूंगा। यह देश के लोगों का हक है कि वे जान सकें कि उनके प्रधानमंत्री कहां, क्यों और किसके लिए विदेश यात्रा कर रहे हैं।”
क्या राजनीति में वैचारिक मतभेद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ हैं?
इस पूरे विवाद से एक बड़ा सवाल भी उठता है: क्या किसी मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री की विदेश नीति पर सवाल उठाने का अधिकार नहीं है? या फिर, क्या लोकतंत्र में वैचारिक विरोध को “अवांछनीय” करार देना सही है?
मान के समर्थकों का मानना है कि उन्होंने आम आदमी की आवाज उठाई है और अगर देश की 140 करोड़ जनता की समस्याएं अनदेखी की जा रही हैं, तो नेताओं को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।
वहीं भाजपा समर्थकों और केंद्र सरकार का कहना है कि प्रधानमंत्री के वैश्विक दौरे भारत की छवि और प्रभाव को मज़बूत करने के लिए हैं। ऐसे में उन्हें नीचा दिखाना देश की छवि पर भी असर डालता है।
देशहित की राजनीति या व्यक्तिगत टकराव?
भले ही इस पूरे विवाद को राजनीति से प्रेरित कहा जा सकता है, लेकिन इससे यह साफ है कि केंद्र और राज्यों के बीच संवाद और सवालों की संस्कृति को संतुलित करना आवश्यक है। भगवंत मान के बयान भले ही तीखे हों, लेकिन लोकतंत्र में सवाल पूछना अपराध नहीं होना चाहिए।
वहीं, यह भी ज़रूरी है कि संवैधानिक पदों की गरिमा और राष्ट्रीय हितों का ध्यान रखा जाए, ताकि भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि और विदेश नीति पर आंच न आए।
by harjeet singh