
चीन-पाक मिलकर रच रहे भारत के खिलाफ रणनीति! अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट में बड़ा खुलासा
नई दिल्ली।
भारत के चारों ओर चीन एक सैन्य और रणनीतिक जाल बुन रहा है। अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की हालिया रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि की गई है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत अब चीन को अपना मुख्य सामरिक प्रतिद्वंद्वी मानता है, जबकि पाकिस्तान को एक “प्रबंधनीय समस्या” के रूप में देखता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत की रक्षा प्राथमिकताएं अब वैश्विक नेतृत्व को मजबूत करने, चीन की चुनौती का मुकाबला करने और सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने पर केंद्रित हैं।
चीन की बढ़ती सैन्य मौजूदगी
अमेरिकी रिपोर्ट के अनुसार, चीन न केवल भारत की सीमाओं के आसपास सैन्य गतिविधियां बढ़ा रहा है, बल्कि उसने म्यांमार, पाकिस्तान, श्रीलंका जैसे देशों में अपनी सैन्य सुविधाएं स्थापित करने की दिशा में भी कदम उठाए हैं। इससे भारत को लगातार अपनी पश्चिमी और उत्तरी सीमाओं पर तनाव का सामना करना पड़ रहा है।
भारत-पाक के बीच बढ़ा तनाव, चीन की ‘चुप’ भूमिका
हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसे हालात बन गए थे। इस पूरे घटनाक्रम में चीन ने सार्वजनिक रूप से तो चुप्पी साधे रखी, लेकिन पाकिस्तान को परोक्ष रूप से समर्थन देता रहा। अब अमेरिका की रिपोर्ट का कहना है कि चीन और पाकिस्तान मिलकर अफगानिस्तान में अपना प्रभाव बढ़ाने की योजना पर काम कर रहे हैं — यह वही क्षेत्र है, जहां भारत ने दशकों से रणनीतिक और आर्थिक निवेश किया है।
CPEC का विस्तार और अफगानिस्तान में चीन की पैठ
पाकिस्तान और चीन के बीच चल रहे ‘चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर’ (CPEC) प्रोजेक्ट का अब विस्तार अफगानिस्तान तक किया जा रहा है। हाल ही में बीजिंग में एक अहम बैठक हुई जिसमें चीन के विदेश मंत्री वांग यी, पाकिस्तान के इशाक डार और अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी शामिल हुए। तीनों देशों के बीच अफगानिस्तान में CPEC के विस्तार पर सहमति बन गई है।
CPEC के अफगानिस्तान पहुंचने के क्या हैं मायने?
- यह परियोजना पाकिस्तान और अफगानिस्तान को सड़क और रेलवे नेटवर्क के जरिए जोड़ेगी।
- तोरखम और स्पिन बोल्डाक क्रॉसिंग पॉइंट्स से होकर एक हाईवे बनाया जाएगा।
- चीन की ML-1 रेलवे लाइन को अफगानिस्तान के फ्रेट कॉरिडोर से जोड़ा जाएगा।
- अफगानिस्तान के लिथियम और अन्य खनिज भंडारों तक चीन की सीधी पहुंच होगी।
- गैस और तेल पाइपलाइनों का जाल बिछाने में आसानी होगी, जिससे ईरान और वेस्ट एशिया से संपर्क बढ़ेगा।
- ज़रूरत पड़ने पर चीन और पाकिस्तान की सैन्य तैनाती भी इस रास्ते से तेज़ हो सकती है।
भारत का कड़ा विरोध
भारत शुरू से ही CPEC का विरोध करता आया है। भारत की आपत्ति का सबसे बड़ा कारण यह है कि यह परियोजना पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) से होकर गुजरती है, जिसे भारत अपना अभिन्न हिस्सा मानता है। भारत के अनुसार यह उसकी संप्रभुता का उल्लंघन है।
सिर्फ इतना ही नहीं, भारत इस परियोजना को चीन की उस व्यापक रणनीति का हिस्सा मानता है, जिसके तहत वह पड़ोसी देशों में इन्फ्रास्ट्रक्चर निवेश के जरिए अपने सैन्य और रणनीतिक दबदबे को बढ़ा रहा है।
भारत के हितों को खतरा
भारत ने अफगानिस्तान में चाबहार पोर्ट और अन्य विकास परियोजनाओं के जरिए क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ाने में भारी निवेश किया है। CPEC के अफगानिस्तान में प्रवेश से न केवल भारत के निवेश को नुकसान पहुंचेगा, बल्कि क्षेत्र में चरमपंथी ताकतों को भी बल मिल सकता है — खासकर जब इस प्रक्रिया में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों की भूमिका भी हो।
अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट ने साफ कर दिया है कि आने वाले समय में भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती चीन और पाकिस्तान का यह नया रणनीतिक गठजोड़ बन सकता है, जो सिर्फ सीमा तक सीमित नहीं, बल्कि भारत की विदेश नीति, सुरक्षा और आर्थिक हितों को भी गहराई से प्रभावित कर सकता है।