
नई दिल्ली।
जस्टिस यशवंत वर्मा को लेकर मोदी सरकार
बड़ा कदम उठाने की तैयारी में है। सूत्रों के अनुसार, संसद के आगामी मानसून सत्र में उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है। इसके लिए सरकार ने केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजु को सभी दलों के बीच सहमति बनाने की जिम्मेदारी दी है।
पहले ही हो चुकी है जांच, दोबारा प्रक्रिया की नहीं जरूरत
बताया जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश द्वारा पहले ही गठित जांच समिति ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ लगे आरोपों की पुष्टि कर दी है। ऐसे में महाभियोग प्रस्ताव लाने के बाद एक बार फिर से जांच समिति बनाने की जरूरत नहीं पड़ेगी, जिससे प्रक्रिया तेज हो सकती है।
सर्वसम्मति के लिए राजनीतिक दलों से बातचीत जारी
सरकारी सूत्रों का कहना है कि किरण रिजिजु जल्द ही विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से मिलकर प्रस्ताव के लिए समर्थन जुटाने की कोशिश करेंगे। नियमों के अनुसार, किसी भी हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए राज्यसभा में 50 और लोकसभा में 100 सांसदों के हस्ताक्षर जरूरी होते हैं। इसके बाद सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत या उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से यह प्रस्ताव पारित किया जा सकता है।
क्या मानसून सत्र में पारित हो जाएगा प्रस्ताव?
यदि सरकार सभी दलों को एकमत करने में सफल रहती है, तो यह प्रस्ताव मानसून सत्र के दौरान ही पारित हो सकता है। इससे यह मामला संसद में तेजी से आगे बढ़ेगा।
तीन सदस्यीय समिति की जांच पहले ही हो चुकी
सामान्यतः महाभियोग प्रस्ताव पास होने के बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश एक तीन सदस्यीय समिति बनाकर आरोपों की जांच करवाते हैं। लेकिन चूंकि जस्टिस वर्मा के मामले में यह प्रक्रिया पहले ही पूरी हो चुकी है, इसलिए संसद में आगे की कार्रवाई में देरी की संभावना नहीं है।
इस तरह, सरकार ने जस्टिस वर्मा के मामले में कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए राजनीतिक रणनीति भी तेज कर दी है। अब देखना यह होगा कि मानसून सत्र में यह प्रस्ताव किस दिशा में जाता है।