
ऑपरेशन सिंदूर: भारत ने एक नहीं तीन दुश्मनों को दी मात, चीन-तुर्की ने दिया पाकिस्तान का साथ – सेना का बड़ा खुलासा
नई दिल्ली |
भारतीय सेना ने हाल ही में हुए चार दिवसीय सैन्य अभियान ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर एक बेहद अहम खुलासा किया है। सेना के अनुसार, भारत ने सिर्फ पाकिस्तान से ही नहीं, बल्कि उसके पीछे खड़े दो और बड़े दुश्मनों — चीन और तुर्की — से भी मुकाबला किया। इस तरह भारत को एक ही सीमा पर तीन मोर्चों पर लड़ाई लड़नी पड़ी। यह जानकारी सेना के उप प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर. सिंह ने शुक्रवार को एक सैन्य सम्मेलन में दी।
उन्होंने बताया कि 7 से 10 मई तक चले इस संघर्ष के दौरान पाकिस्तान को चीन से तकनीकी मदद और जमीनी खुफिया जानकारी मिली, जबकि तुर्की ने ड्रोन और प्रशिक्षित सैन्य संसाधनों के ज़रिए सहयोग दिया। चीन ने इस पूरी भिड़ंत को “लाइव टेस्ट लैब” की तरह इस्तेमाल किया ताकि वह पाकिस्तान को दिए गए हथियारों की युद्ध में क्षमता को परख सके।
चीन की चाल: ‘किराए की तलवार’ से भारत पर वार
जनरल सिंह ने कहा कि चीन ने इस संघर्ष में सीधे उतरने के बजाय ‘किराए की तलवार’ यानी पाकिस्तान का इस्तेमाल कर भारत को चोट पहुंचाने की रणनीति अपनाई। “चीन ने भारत की हथियार तैनाती की सटीक जानकारी पाकिस्तान को रियल-टाइम में भेजी, जिससे वह हमारे सैन्य कदमों की पूरी निगरानी कर रहा था,” उन्होंने बताया।
यह पहला अवसर है जब किसी शीर्ष भारतीय सैन्य अधिकारी ने चीन और पाकिस्तान के बीच युद्ध के दौरान इस तरह की सीधी तालमेल की पुष्टि की है।
पाकिस्तान क्यों पीछे हटा?
पाकिस्तान की ओर से अचानक युद्धविराम की मांग क्यों आई — इस पर भी सिंह ने पहली बार खुलकर बात की। उन्होंने कहा, “क्योंकि भारत एक बड़े हमले के लिए तैयार था। अगर वह ‘छुपा हुआ प्रहार’ होता, तो पाकिस्तान की हालत बेहद खराब हो जाती।”
यह बयान इस बात की पहली सरकारी पुष्टि है कि भारत सिर्फ सीमित हमले तक ही नहीं रुकने वाला था। माना जा रहा है कि भारतीय नौसेना भी इसमें शामिल हो सकती थी।
ऑपरेशन सिंदूर की पृष्ठभूमि
यह सैन्य अभियान तब शुरू हुआ जब पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 लोगों की मौत के बाद भारत ने जवाबी कार्रवाई करते हुए पाकिस्तान और पीओके के नौ आतंकी व सैन्य ठिकानों पर हमला किया।
इसके बाद चार दिनों तक दोनों देशों के बीच टकराव चला, जिसमें लड़ाकू विमान, ड्रोन, मिसाइल, लंबी दूरी के हथियार और भारी तोपखाने का इस्तेमाल हुआ। आखिरकार 10 मई को दोनों पक्ष युद्धविराम पर सहमत हुए।
चीन के हथियारों का पहला असली युद्ध परीक्षण
जनरल सिंह ने बताया कि भारतीय एयर डिफेंस और रडार सिस्टम ने चीन से मिले पाकिस्तान के हथियारों — जैसे J-10 और JF-17 फाइटर जेट, PL-15 मिसाइल और HQ-9 एयर डिफेंस सिस्टम — की बारीकी से निगरानी की। इनका यह पहला लाइव युद्ध उपयोग था।
“चीन ने इसे एक ‘जिंदा प्रयोगशाला’ की तरह इस्तेमाल किया। उन्होंने यह देखा कि उनके हथियार वास्तविक मुकाबले में भारत जैसे प्रतिद्वंद्वी के सामने कैसे काम करते हैं,” सिंह ने कहा।
तुर्की की भूमिका: ड्रोन और प्रशिक्षित विशेषज्ञ
भारत के लिए यह भी चौंकाने वाली बात रही कि तुर्की ने पाकिस्तान को ‘Bayraktar’ जैसे उन्नत ड्रोन पहले से दे रखे थे। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी तुर्की की ओर से भेजे गए प्रशिक्षित सैन्य विशेषज्ञ और ड्रोन पाकिस्तान की मदद में सक्रिय थे।
अगली बार जनसंख्या केंद्र हो सकते हैं निशाना
जनरल सिंह ने चेताया कि इस बार पाकिस्तान ने भारत के जनसंख्या केंद्रों को निशाना नहीं बनाया, लेकिन भविष्य में ऐसा हो सकता है। “हमें एयर डिफेंस और काउंटर-ड्रोन सिस्टम को तेजी से मजबूत करना होगा,” उन्होंने कहा।
अब भारत का रुख स्पष्ट है
उन्होंने कहा कि अब भारत की रणनीतिक भाषा बिल्कुल स्पष्ट है — “अगर आप रेड लाइन पार करेंगे, तो सख्त जवाब मिलेगा। अब पहले की तरह हम सिर्फ दर्द सहने की नीति पर नहीं रहेंगे।”
उन्होंने कहा कि जब सैन्य और राजनीतिक उद्देश्य हासिल हो जाएं, तो युद्ध वहीं रोक देना सबसे बुद्धिमानी होती है। “कई लोग पूछते हैं कि हमने कार्रवाई क्यों रोकी? लेकिन युद्ध शुरू करना आसान है, रोकना मुश्किल। जो हमने किया, वह एक रणनीतिक मास्टरस्ट्रोक था,” सिंह ने कहा।
कांग्रेस ने उठाया सरकार पर सवाल
सेना की इस स्वीकारोक्ति के बाद कांग्रेस ने सरकार पर तीखा हमला बोला है। पार्टी नेता जयराम रमेश ने कहा, “यह वही चीन है जिसने लद्दाख में यथास्थिति को खत्म कर दिया और जिस पर प्रधानमंत्री मोदी ने 19 जून 2020 को सार्वजनिक रूप से क्लीन चिट दी। अब जब सेना के शीर्ष अधिकारी चीन की भूमिका उजागर कर रहे हैं, तो मोदी सरकार संसद में भारत-चीन संबंधों पर बहस क्यों नहीं चाहती?”
उन्होंने कहा कि कांग्रेस मानसून सत्र में फिर इस मुद्दे को उठाएगी और मांग करेगी कि चीन द्वारा पैदा किए जा रहे भू-राजनीतिक और आर्थिक खतरों पर देश को साझा रणनीति के साथ जवाब देना चाहिए।
ऑपरेशन सिंदूर न सिर्फ भारत की जवाबी सैन्य ताकत का प्रतीक है, बल्कि यह इस बात का भी संकेत है कि भविष्य की लड़ाइयाँ बहुस्तरीय और बहु-राष्ट्रीय होंगी। चीन और तुर्की की भूमिका से यह साफ है कि भारत को अब पारंपरिक रणनीति से आगे सोचकर अपनी तैयारियां करनी होंगी।
(by harjeet singh)